माँ तेरे दूध का हक़ मुझसे अदा क्या होगा, तू है नाराज तो खुश मुझसे खुदा क्या होगा। इस दुनिया में केवल माँ-बाप ही आपसे बिना स्वार्थ के प्यार करते हैं। न जाने कैसे पत्थर की मूर्ति के लिए अपने घर में जगहा बना लेते है वो लोग जिनके घर में माँ-बाप के लिए कोई जगहा नहीं होती है। जिस घर में माँ-बाप की कदर नहीं होती, उस घर में कभी बरकत नहीं होती। फुल कभी दोबारा नहीं खिलते, जन्म कभी दोबारा नहीं मिलते, मिलते है लोग हजारों पर हजारों गलितियाँ माफ करने वाले माँ-बाप दोबारा नहीं मिलते। मुझे किसी और जन्नत का नहीं पता क्योंकि मैं माँ के क़दमों को ही जन्नत कहती हूँ।
माँ तेरे दूध का हक़ मुझसे अदा क्या होगा, तू है नाराज तो खुश मुझसे खुदा क्या होगा।
इस दुनिया में केवल माँ-बाप ही आपसे बिना स्वार्थ के प्यार करते हैं।
न जाने कैसे पत्थर की मूर्ति के लिए अपने घर में जगहा बना लेते है वो लोग जिनके घर में माँ-बाप के लिए कोई जगहा नहीं होती है।
जिस घर में माँ-बाप की कदर नहीं होती, उस घर में कभी बरकत नहीं होती।
फुल कभी दोबारा नहीं खिलते, जन्म कभी दोबारा नहीं मिलते, मिलते है लोग हजारों पर हजारों गलितियाँ माफ करने वाले माँ-बाप दोबारा नहीं मिलते।
मुझे किसी और जन्नत का नहीं पता क्योंकि मैं माँ के क़दमों को ही जन्नत कहती हूँ।
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